इस्लाम मे "तलाक" के तौर तरीके,,,,

इस्लाम मे "तलाक" के तौर तरीके,,,,
_____________________________________

भारत का ऐतिहासिक दिन '२२ अगस्त २०१७'
इस दिन सुप्रीम कोर्ट ने इस्लाम मे चल रहे ट्रिपल तलाक को खारिज़ करते हुए उसे अस्वविधानिक करार दिया। पूरे भारत वर्ष में इस दिन सब ने खुसी ज़ाहिर की सिवाय इस्लाम मजहबी ठेकेदार मुल्ला, मौलवी, मुफ्तियों के। खासकर मुस्लिम महिलाओं ने बहोत ही हर्सोल्लास के साथ एक दूसरे को मिठाई खिलाकर अपनी खुसी ज़ाहिर की, क्योंकि ट्रिपल तलाक से सबसे ज्यादा प्रताड़ित, दुखी मुस्लिम महिलाएं ही होती थी, पूरी तरह बेकुसूर होते हुए भी ट्रिपल तलाक के बाद हलाला जैसी वेश्यावृत्ति जैसी प्रथा से उनको गुजरना पड़ता था। हम सबके लिए बहोत ही खुसी की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को खारिज़ कर दिया,,, पर क्या इससे तलाक और हलाला का दंश पूरी तरह खत्म हो गया है? क्या मुस्लिम महिला इससे अब पूरी तरह सुरक्षित हो गई? बिलकुल नही, इस्लाम मे तलाक के और भी कई तरीके है, जिससे आदमी अपनी बीबी को आसानी से तलाक दे सकता है।

सामान्य जन मानस इस्लाम मे तलाक की एक ही मान्यता समझते है। तीन तलाक बोल दिया समजो तलाक हो गया। अब कोर्ट ने उसे खारिज़ कर दिया तो तलाक की सारी तकलीफे दूर,,,, पर ऐसा बिल्कुल नही है। में आपको बताता हूं इज़लाम में तलाक के और भी तौर तरीके है,,, जिसमे आदमी और औरत दोनों एक दूसरे को तलाक देने के अधिकारी है। जो इस प्रकार है।

(१) तलाक ऐ सुन्नत
(२) तलाक ऐ बिद्दत
(३) तलाक ऐ इला
(४) तलाक ऐ ज़िहार
(५) तलाक ऐ खुला
(६)तलाक ऐ मुबारत
(७) तलाक ऐ लिएन
(८) न्यायिक तलाक

उपरोक्त दिए गए सभी तलाक के नाम है, जिनके द्वारा इस्लाम मे आदमी और औरत अलग अलग तरीके से तलाक दे सकते है, जो इस्लाम मे पहले भी प्रचलित था और आज भी है, पर ट्रिपल तलाक के अलावा बाकी तलाक की घटनाएं बहोत कम देखने मिलती है। आइये अब में आपको उपरोक्त सभी तलाक के बारे में संक्षिप्त में जानकारी देता हूं।

(१) तलाक ऐ सुन्नत
तलाक ऐ सुन्नत के दो उपभाग है "अहसन" और "हसन"
~अहसन तलाक में पति के द्वारा एक ही उच्चारण में तलाक देना जरूरी है। अगर औरत मासिक धर्म मे हो तो तो पति अपनी पत्नी को तलाक नही दे सकता। पत्नी का मासिक धर्म से पाक साफ होने पर ही ये तलाक लागू होता है।
~हसन तलाक में पति के द्वारा तलाक शब्द तीन बार अलग अलग समय पर कहने पर लागू होता है। मतलब औरत मासिक धर्म से तीन बार पाक होने पर आदमी को तीन मासिक धर्म मे तीन बार तलाक बोलना अनिवार्य है, एक बार तीन तलाक हसन तलाक में लागू नही होता।

शरीयत में इन दोनों तलाक के भी तीन और तरीके है जिसे बाईंन, मुगल्लज़ा, और रज़ई तलाक कहते है। जिसे हम उपरोक्त अहसन और हसन तलाक के पर्यायवाची भी कह सकते है, सब मे बहोत मामूली अंतर है। अहसन और हसन दोनों तरीको से दिए गए तलाक के बाद अगर पति और पत्नी को फिरसे साथ रहना है, तो यहाँ औरत का हलाला करना आवश्यक है।

ट्रिपल तलाक और हलाला के लिए कुरान सूरः 2 की आयात 229 और 230 पढ़े।

(२)तलाक ऐ बिद्दत
इस तलाक में आदमी अपनी औरत को किसी भी हाल में, किसी भी जगह से, किसी भी तरीके से तलाक दे सकता है, और ये तलाक तत्काल लागू हो जाता है, इसमे किसी भी इद्दत की कोई गुंजाइस नही। जिसे हम ट्रिपल तलाक के नाम से जानते है, sc ने इसी तलाक को खारिज़ किया है। इसमे आदमी अपनी बीबी से फिरसे सादी करना चाहे तो औरत का हलाला करवाने के अलावा और कोई चारा नही।

(३)तलाक ए इला
इस तलाक में आदमी एक किस्म की अल्लाह को साक्षी मानकर प्रतिज्ञा लेता है, जैसे  में तुम्हारे पास दस दिन नही आऊंगा या में तुमसे बीस दिन तुमसे सेक्श (हम बिस्तरी) नही करूँगा। कसम खाने के दिन की अवधि निश्चित नही है। पति चाहे कितने भी दिन तक अपनी औरत से सेक्श ना करने की कसम खा सकता है। पति के कसम खाने के चार महीने तक अगर पति अपनी पत्नी से सेक्श नही करता तो ये तलाक वैध हो जाता है। अगर पति इन चार महीने बीतने से पहले या अपनी कसम के निश्चित दिन से पहले अपनी पत्नी से सेक्श कर लेता है, ओ तलाक मान्य नही होगा। अगर पति को पछतावा हो और अपनी पत्नी से अलग ना रह सकता हो तो इस कसम को मौखिक रूप से तोड़कर फिर से अपनी पत्नी के साथ पहले की तरह रह सकता है।

(४) तलाक ए जिहार
ये तलाक एक अजीब किस्म का तलाक है। इस तलाक में अगर पति अपनी पत्नी से सेक्श करते समय अगर ये कह दे, कि तुजसे सेक्श करते वक़्त मुजे तुझमे मेरी माँ दिखती है, या तू मेरी माँ, बहन, बेटी जैसी है, या यूं कहें कि तेरे शरीर का ये या वो अंग मेरी माँ, बहन, बेटी जैसा है, तो तुरंत पति और पत्नी के बीच तलाक हो जाता है। तलाक के बाद पत्नी अपने पती के घर रह तो सकती है, पर अपने पति को छू भी नही सकती और पति पत्नी से कोई ज़ोर जबरजस्ती नही कर सकता, अगर करता भी है तो ये बहोत बड़ा गुना है। अगर पति को फिर से अपनी पत्नी से पहले की तरह संबंध रखने हो, सेक्श करना हो, बच्चे पैदा करना है तो पति को पत्नी से फिरसे शादी करने की कोई ज़रूरत नही, अच्छी बात ये है कि जिहार में हलाला भी लागू नही होता। पति को शरीयत कानून के हिसाब से कुछ कुफ़्फ़रा देना होता है जो इस प्रकार है,,,,

~एक गुलाम को आज़ाद कर के (अब ये प्रथा नही रही)
~साठ (60) दिन रोज़ा रखकर
~साठ (60) गरीबो को भोजन कराकर

ज़िहार से बचने के लिए पति को उपरोक्त तीन में से किसी एक का कुफ़्फ़रा करने के बाद अपनी पत्नी से पहले की तरह संबंध बना सकता है। जिहार के बारे में कुरान की सूरः 58 की आयात 1 से 4 में बताया गया है। कि हदीसो में भी इसका उल्लेख है।

(५) तलाक ए खुला
इस तलाक में तलाक देने का उत्तराधिकार पत्नी होती है।
तलाक का प्रस्ताव पत्नी की तरफ से होता है। पर यह भी औरत से भेदभाव है, किसी कारण वस पत्नी ने तलाक का प्रस्ताव रखा और पति ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नही किया तो तलाक की अरजी खारिज़ हो जाती है, पत्नी का कोई बस नही चलता। अगर पति तलाक स्वीकार कर लेता है, तो पत्नी को अपने पति को हर्ज़ाना देना होता है, साथ ही साथ अपनी मेहर की तय की हुई रकम भी छोड़नी होती है।

(६) तलाक ऐ मुबारत
तलाक का ये तरीका बहोत ही अच्छा और आसान तरीका है। इसमें तलाक देने का अधिकार पति और पत्नी दोनों को बराबर का है। पति और पत्नी दोनों की सम्मति और दोनों की मर्जी से होता है। इस तलाक में मेहर या हर्ज़ाना एक दूसरे को देने का कोई प्रश्न नही उठता, मतलब परस्पर लेन देन का कोई नियम नही लागू होता, क्योकी तलाक दोनो की सहमती से होता है।

(७) तलाक ऐ लिऐन
ये तलाक का तरीका एक तरह की पति के द्वारा पत्नी पर व्यभिचार का तोहमत (आरोप) लगाना होता है, जैसे पति पंच के सामने अपनी पत्नी पर तोहमत लगाता है, कि मेने मेरी पत्नी को किसी गैर मर्द के साथ सेक्श करते देखा या मेरी पत्नी बद्चलन है। इस मामले में शरीयत के हिसाब से क़ाज़ी या पंच पहले पति को चार बार ये कसम खिलवाते है, कि में अल्लाह को गवाह कर के कहता हूं की मेने अपनी पत्नी पर जो तोहमत लगाई है उसमें में सच्चा हु और पाँचवी बार कहे अगर में जूठा हु तो अल्लाह की मुझपर लानत हो। बाद में इसीतरह पत्नी को  भी यही कसम चार बार खानी पड़ती है, कि में अल्लाह की गवाह करके कहती हूं मेरे पति ने मुझपर जो तोहमत लगाई है वो बिल्कुल जुठ है, तोहमत लगाने पर अगर ये सच्चा हो तो अल्लाह की मुझ पर बेसुमार लानत। इसके बाद पंच दोनों को हमेसा के लिए अलग कर देता, पति पत्नी चाहकर भी भविष्य में कभी एक नही हो सकते। ये सम्बध हमेशा के लिए खत्म हो जाता है। इसे कुरान की सूरः 24 की आयत 6 से 9 में पढ़ सकते है। इसपर भी कई हदीसे बयान है।

(८)न्यायिक तलाक
ये तलाक पूर्णतः कोर्ट कचहरी से ताल्लुकात रखता है। मुस्लिम अधिनियम 1939 पारित किए जाने के बाद मुस्लिम समुदायों के किसी भी फ़िरकों (जाती) में धारा 2 और 9 के अन्तर्गत कानूनी प्रक्रिया के तहत ये तलाक मान्यता प्राप्त है।

उपरोक्त जितने भी तलाक का उल्लेख किया (८) को छोडक़र सभी विधि में मुसलमानों के कुछ फ़िरकों में छोटे छोटे अंतर है पर मूल सिद्धांत सभी फ़िरकों पर लागू होता है।

संदर्भ- क़ुरान, सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम, मिस्कात, बहिस्ति ज़ेवर, मुस्लिम लॉ (बुक)
जय हिंद।

#बबूला_भक्ता

Comments

Popular posts from this blog

Dayand antarvasna

#सत्यार्थप्रकाश_का_असत्य " भाग 2 "

।।सृष्टि बने कितने वर्ष हुये।।