सत्यार्थप्रकाश_का_असत्य भाग-3
दयानंद जी द्वारा मंगलाचरण का निषेध-2
सत्यार्थप्रकाश के प्रथम समुल्लास के अन्त में दयानंद जी लिखते है " जो आधुनिक ग्रंथ वा टीकाकारकों के श्री गणेशाय नमः, सीतारामाभ्याम् नमः, राधाकृष्णाभ्याम् नमः, श्रीगुरुचरणारविन्दाभ्याम् नमः, हनुमते नमः दुर्गायै नमः बटुकाय नमः, भैरवाय नमः, शिवाय नमः, सरस्वत्यै नमः, नारायणाय नमः इत्यादि लेख देखने में आते हैं इनको बुद्धिमान लोग वेद और शास्त्रों से विरुद्ध होने से मिथ्या ही समझते हैं। क्योंकि वेद और ऋषि मुनियों के ग्रंथों में कहीं ऐसा मंगलाचरण देखने में नहीं आता "
दयानंद जी का यहाँ मिथ्या लिख रहे है:-
पूर्व में हम बता चुके हैं कि दयानंद सरस्वती स्वयं मंगलाचरण करते हैं और अन्य को ऐसा करने से रोकते है।
सर्वप्रथम मंगलाचरण पर विचार करते है।मंगलाचरण किसे कहते ?
मंगलाचरण दो शब्दों से मिलकर बना है
मंगल और आचरण
मंगल का अर्थ है कल्याणकारी, शुभ, हितकारक
आचरण का अर्थ है अभ्यास करना, अनुकरण करना, व्यवहार ।
मंगलाचरण का सीधा सा अर्थ है जो कल्याणकारी हो शुभकारक हो और हितकारक हो उसका अनुकरण करना , उसका अभ्यास करना, और अपने आचरण में लाना ।
वेद,वेदांग, मीमांसा, दर्शन, उपनिषद, स्मृति,पुराण, रामायण, महाभारत, रामचरित मानस, संस्कृत साहित्य के ग्रन्थ सभी में मंगलाचरण का प्रयोग हुआ है। वेद आदि में वैदिक मंगलाचरण हुआ है
"अथ" शब्द स्वयं में मंगलकारक शब्द है।
ब्रह्मा जी के कण्ठ से सर्वप्रथम इसकी उत्पत्ति हुई है ।
औकारश्चाथ शब्दश्च द्वावेतौ ब्रह्मणः पुरा।
कंठंभित्वा विनिर्यातौ तेन मांगलिका बुधौ।।
अतः "अथ" कहना और सुनना दोनो ही मंगलकारक है।
मंगलाचरण क्यो करना चाहिये ?
मंगलाचरण करने में शिष्टाचार ही प्रमाण है। शिष्टजन मंगलाचरण किया करते हैं उनके आचरण को प्रमाण मानते हुए " प्रकृताभिमतदेवतयोः " इष्टदेवता को नमस्कार करना ही मंगलाचरण का स्वरूप है।
इष्ट देवता दो प्रकार के हो सकते हैं
1. प्रसंग के अनुकूल = प्रकृत= प्रकरण प्राप्त
2. अभिमत = पूजनीय
प्रत्येक विद्वान अपने ग्रंथ में उस देवी या देवता की स्तुति करते है:-
1. जिस देव या देवी से संबंधित ग्रंथ है।
2. जो देव उस ग्रंथकार का इष्ट है।
3. जिस देवता की स्तुति उसके गुरुपरंपरा में होती आई है।
यही कारण है कि सनातन धर्म और संस्कृत साहित्य के सभी ग्रन्थों में ग्रन्थकार ग्रन्थविषयक देव, अपने इष्टदेव तथा अपनी गुरु परम्परा के देव की स्तुति करते रहे है ।
महाभारत में प्रथम श्लोक में श्री नारायण जी, नरश्रेष्ठ अर्जुन, देवी सरस्वती , और महर्षि वेदव्यास जी को नमन किया गया है।
भक्तिरस के महान ग्रंथ श्रीरामचरितमानस के आरंभ में भगवान श्री गणेश जी भगवती सरस्वती जी भगवान शिव मां पार्वती भगवान गुरुदेव शिव रूपी सदगुरुदेव श्री सीताराम भगवान श्री हनुमान जी की स्तुति की गई है।
अतः दयानंद सरस्वती जी का यह कहना कि
" जो आधुनिक ग्रंथ और टीका कारकों के श्री गणेशाय नमः, सीतारामाभ्याम् नमः, राधाकृष्णाभ्याम् नमः, श्रीगुरुचरणारविन्दाभ्याम् नमः, हनुमते नमः दुर्गायै नमः बटुकाय नमः, भैरवाय नमः, शिवाय नमः, सरस्वत्यै नमः, नारायणाय नमः इत्यादि लेख देखने में आते हैं इनको बुद्धिमान लोग वेद और शास्त्रों से विरुद्ध होने से मिथ्या ही समझते हैं "
पूर्णतया शास्त्र विरुद्ध है। यह दयानंद जी का व्यक्तिगत मत है।
मंगलाचरण करना हमारी वैदिक और शास्त्रीय परम्परा है।
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