#क्या_हनुमान_जी_लंका_उडकर_गए_थे ?
#हनुमान जी को लेकर के बहुत सारी अवधारणाएं समाज में प्रचलित है कि कोई कहता है वे उडकर गए थे कोई कहता है कि नहीं गए थे ।
वास्तव में हम नहीं कह सकते यह इतिहास का विषय है कि वह उडकर कर गए थे या नहीं गए लेकिन इस विषय पर हम ध्यान दें कि क्या कोई व्यक्ति उड़ सकता है या नहीं ? तो हां कोई व्यक्ति उड़ सकता है इसकी संभावना पूरी पूरी है यह मैं नहीं कह रहा है यह हमारे #आर्ष ग्रंथ योग दर्शन में महर्षि पतंजलि ने सिद्धियों का वर्णन किया है और हम इस ग्रंथ को प्रमाणिक भी मानते हैं ।
जो व्यक्ति हठ और दुराग्रह से मुक्त है वह ऋषियों के इस दिव्य संदेश को सहज ही स्वीकार करेगा ।
हमको ऐसा लगता है कि इस कार्य को हम नहीं कर सकते तो कोई भी नहीं कर सकता ।
और हम एक बात बहुत शीघ्रता से कह देते हैं कि यह चीज तो सृष्टि नियम के विरुद्ध है तो क्या वास्तव में हमने सृष्टि के समस्त नियमों को जान लिया है?
सत्व रज और तम किस प्रकार से कार्य करते हैं और उनकी कितनी अपार क्षमताएं है क्या इसका हमने साक्षात्कार कर लिया है ?
हम हर उस चीज को प्रक्षिप्त कह देते हैं जो हमारी सीमाओं से परे है ?
जब रिमोट से डीवीडी प्लेयर चलते हुए पहली बार देखा तो हमें आश्चर्य हुआ कि ऐसे कैसे हो सकता है किंतु अभी हम उसको सहजता से स्वीकार करते हैं क्योंकि ऐसा भी संभव है हम प्रतिदिन यह देख रहे हैं लेकिन इस बात को कोई हम से पहले कहता तो यह चीज हम कभी भी मानने को तैयार नहीं होते
ऐसी ही बहुत सारी चीजें हैं जिनका हमें अभी पता नहीं है
हम अपने स्तर से महापुरुषों का आँकलन नहीं कर सकते हैं ?
हनुमान जी उड़कर गए थे इस विषय में भी रामायण में श्लोक मिलते हैं और वह जल में तैर कर के गए थे इसके भी प्रमाण मिलते हैं दोनों ही प्रमाण बाल्मीकि रामायण में आज भी उपलब्ध हैं
नीचे कुछ योग दर्शन के प्रमाण दिए गए हैं आप उन्हें पढ़कर मनन करने के बाद निश्चय पर पहुंच सकते हैं
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जन्मौषधि मंत्र तपः समाधिजाः सिद्धयः
योग. कैवल्य पाद ॥१॥
शब्दार्थ- (जन्म-औषधि-मन्त्र-तपः-समाधिजाः) जन्म, औषधि, मन्त्र, तप और समाधि से (सिद्धयः) सिद्धियां उत्पन्न होती हैं। सूत्रार्थ पूर्व जन्म के संस्कारों से, औषधियों के सेवन से, गायत्री आदि मन्त्रों के जप से, तप से और समाधियों से 'सिद्धियाँ' उत्पन्न होती हैं,
उदानजयाज्जलपङ्ककण्टकादिष्वसङ्ग उत्क्रान्तिश्च ॥ योग.विभूतिपाद ३९ ॥
शब्दार्थ - (उदान-जयात्) उदान के जीतने से (जल-पार्क-कटक-आदिषु-असङ्ग उत्क्रान्ति:-च) जल, पङ्क, कण्टकादि में असङ्ग रहता है और ऊर्ध्वगति होती है। सूत्रार्थ - उदान की जीतने से जल, पङ्ग काटें आदि से सङ्ग नहीं होता अर्थात् जलादि में योगी का शरीर नहीं डूबता, योगी के शरीर में काटें आदि नहीं चुभते और मृत्यु के पश्चात् वह योगी ऊंची गति को प्राप्त करता है।
कायाकाशयोः सम्बन्धसंयमात् लघुतूलसमापत्तेश्चाकाशगमनम् ॥ ४२ ॥
शब्दार्थ- (काय-आकाशयोः) शरीर और आकाश के (सम्बन्ध-संयमात्) सम्बन्ध में संयम करने से (लघु-तूल-समापत्तेः-च) और हल्के तूल आदि पदार्थों में संयम के द्वारा समापत्ति प्राप्त होने पर (आकाश-गमनम्) आकाश में गमन सिद्ध हो जाता है। सूत्रार्थ - शरीर और आकाश के सम्बन्ध में संयम करने से अथवा हल्के रूई आदि पदार्थों में संयम के माध्यम से चित्त के तदाकार होने पर 'आकाश गमन की सिद्धि प्राप्त होती है।
आप के जितने भी प्रश्न हो वह कमेंट में आप डाल सकते हैं जिससे कि मैं आपके कुछ प्रश्नों का अपनी वीडियो के द्वारा उत्तर दे सकूँ ।
विस्तार से सभी जानकारी वीडियो में दूंगा
नोट- सत्य के ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए।
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