अवतार
#अवतार ---
जब भी आप अवतारों और ईश्वर के जन्म की बात करते है तो उसका विरोध करने वाले तर्क देते है कि ये सिर्फ कल्पना है जिसका होना विज्ञान नकारता है । क्योंकि डार्विनवाद के अनुसार मनुष्य का जन्म एक क्रमिक विकास का परिणाम है और कुछ अनीश्वरवादी नास्तिक जो तथाकथित स्वघोषित बुद्धिमान है इसे ही अंतिम सत्य मानते है ये लेख आज उन बुद्धिजीवियों को समर्पित है । तो आइए कुछ तथ्य रखते है --
#डार्विनवाद -- चार्ल्स डार्विन का मत था कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तन द्वारा अपना विकास करती है. विकासवाद कहलाने वाला यही सिद्धांत आधुनिक जीवविज्ञान की नींव बना. डार्विन को इसीलिए मानव इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है।
#डार्विन_के_अनुसार -
पौधों की तरह जीवों का भी यही हाल है, मनुष्य के पूर्वज किसी समय बंदर हुआ करते थे, पर कुछ बंदर अलग से विशेष तरह से रहने लगे और धीरे–धीरे जरूरतों के कारण उनका विकास होता गया और वो मनुष्य बन गए। इस तरह से जीवों में वातावरण और परिस्थितियों के अनुसार या अनुकूलकार्य करने के लिए 'क्रमिक परिवर्तन' तथा 'इसके फलस्वरूप नई जाति के जीवों की उत्पत्ति' को क्रम–विकास या विकासवाद (Evolution) कहते हैं।
#आधुनिक_विज्ञान_का_मत -
वैज्ञानिकों की अवधारणा है कि अणुओं की स्वतः प्रवर्तित पारस्परिक क्रियाओं के कारण कुछ बहुलक आपस में जुड़े और एक कोश जैसी संरचना का निर्माण हुआ। ये कोश पानी में अघुलनशील थे और कुछ रसायनों के लिए अर्ध पारगम्य थे। इस प्रकार कोश का भीतरी भाग एक स्वतः पूर्ण क्षेत्र था जिसके अन्दर स्वतःप्रवर्तन से निर्मित बड़े अणु संचित रह सकते थे। समय के साथ ये बड़े अणु कोशिकीय अंगों में विकसित हो गए। यह भी माना जाता है कि ‘कार्यकारी अणुओं’ (प्रोटीन, उत्प्रेरक) और ‘सूचना अणुओं’ (न्यूक्लिक अम्ल) के कोशों में भी परस्पर सामंजस्य हुआ होगा जिसके फलस्वरूप पहले ‘प्री-साईट’ (एक तरह की कोशिका की पूर्वज संरचना) का जन्म हुआ।
दूसरे मत के अनुसार कुछ बड़े तथाकथित ‘जीवों’ द्वारा छोटे ‘जीवों’ को निगल लिया गया होगा। इन छोटे जीवों में ऑक्सीजन को उपयोग करने की क्षमता थी और ‘मेहमान’ की क्षमता पर ‘मेजबान’ की निर्भरता के बदले उसे पोषण प्रदान किया जाने लगा। समय के साथ ये ‘मेहमान’ कोशिकांग बन गए जिनका कोशिका से अटूट संबंध हो गया।
इस प्रकार की जटिलताओं वाली कोशिकाएं लगभग 1200 लाख वर्ष पूर्व सामने आई थीं। एटनबरो के कलैण्डर के अनुसार ऐसा सितम्बर की शुरूआत में हुआ। और अक्टूबर में, यानि 800-1000 लाख वर्ष पूर्व, जीवन का अगला विकसित रूप, स्पॉन्ज, प्रकट हुआ और इसके बाद तो जैसे एक विस्फोट हुआ और धरती पर विभिन्न प्रकार के अकशेरूकियों की उत्पत्ति हुई।
#संक्षेप_में --
पहले जलचर आये फिर उनसे विकसित होकर उभयचर बने फिर उनसे विकसित होकर थलचर (जिनमे तैरने की छमता थी) फिर उनसे विकास हुआ कपि का(आदि मानव) इनसे विकसित हुए मानव के आदिम पूर्वज(जो कद में छोटे थे) इनसे विकसित हुए नियेंडरथल मानव(जिन्होंने शिकार करना शुरू किया) इनसे विकास हुआ क्रोमैग्नॉन मानव (आधुनिक मानव)
अब जरा हिंदुस्म में हुए अवतारों को एक बार देखते हुए एक तथ्यात्मक तुलना करते है --
1. #प्रथम अवतार -
"#मत्स्य" एक जीव है जो केवल पानी में रहते हैं.. और, वैष्णव के अनुसार धरती पर जीव की उत्पत्ति समुद्र के झाग या मिनरल से हुई थी ।
2. #दूसरा अवतार -
"#कुर्मा"या "#कच्छप" एक जीव है जो पानी और भूमि ( उभयचर ) दोनों जगहों में रह सकता है तथा, इसी प्रकार के जीवोँ से धरती पर अन्य जीवोँ की भी उत्पत्ति मानी जाती है ।
3. #तीसरा अवतार -
"#वाराह" एक जीव है जो केवल जमीन पर रहते हैं ( स्विमिंग करने की क्षमता के साथ )
4. #चौथा अवतार -
"#नरसिम्हा" आधा शेर और आधे मानव एक अवस्था होमो शेपियनंस और जानवरों के बीच की है जिसे आप आदिमानव भी कह सकते हो!
5. #पांचवें अवतार -
"#वामन"छोटे कद के साथ होमो इरेक्टस .
6. #छठा अवतार -
#परशुराम किसी न किसी रूप में कठिन मानव ( कुल्हाड़ी के साथ राम ) आप इन्हें शिकारी मानव भी कह सकते हो!
7. #सातवां अवतार -
#श्री_राम सही सभ्य मानव ( एक धनुष और महान प्रथाओं के साथ राम )
कृपया आठवें और नौवे अवतार के संदर्भ में परेशान न हो दक्षिण भारत और उत्तर भारत की मान्यताओं में थोड़ा फर्क है जहां कृष्ण को आठवें और अयप्पा को 9वे स्थान पे रखा जाता है वही उत्तर में कृष्ण को 8वे और बलराम को नवे स्थान पे ।।
8. #आठवां अवतार -
भगवान #श्रीकृष्ण अलौकिक बुद्धिमता (मूल अभिव्यक्ति) वालेये धरती के प्रखर बुद्धिमता और राज-सत्ता एवं सामाजिक चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं!
9. #नौवां अवतार -
#बलराम व्यावसायिक कौशल के साथ मानव ( हल के साथ बलराम ,कृषि और व्यवसाय को दर्शाते हैं )
नौवां अवतार दक्षिण भारत के विष्णु अवतार मेँ बलराम को कहा जाता है जो कृषक या व्यापारी वर्ग के रक्षक और उनके देवता माने जाते हैँ ।
#विशेष -
अवतारवाद की हिन्दू धर्म में विशेष प्रतिष्ठा है। अत्यंत प्राचीन काल से वर्तमान काल तक यह उस धर्म के आधारभूत मौलिक सिद्धांतों में अन्यतम है। 'अवतार' का शब्दिक अर्थ है - भगवान का अपनी स्वातंत्रय शक्ति के द्वारा भौतिक जगत् में मूर्तरूप से आविर्भाव होना, प्रकट होना। 'अवतार' तत्व का द्योतक प्राचीनतम शब्द 'प्रादुर्भाव' है। श्रीमद्भागवत में 'व्यक्ति' शब्द इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। (10.29.14)। वैष्णव धर्म में अवतार का तथ्य विशेष रूप से महत्वशाली माना जाता है, क्योंकि विष्णु (या नारायण) के पर, व्यूह, विभव, अंतर्यामी तथा अर्चा नामक पंचरूपधारण का सिद्धांत पांचरात्र का मौलिक तत्व है। इसीलिए वैष्णवजन भगवान के इन नाना रूपों की उपासना अपनी रुचि तथा प्रीति के अनुसार अधिकतर करते हैं।
#नोट - अगर आप डार्विनवाद का समर्थन करते हैं तो आपको अवतारवाद पे उँगली उठाने का कोई अधिकार नही ।।
जब भी आप अवतारों और ईश्वर के जन्म की बात करते है तो उसका विरोध करने वाले तर्क देते है कि ये सिर्फ कल्पना है जिसका होना विज्ञान नकारता है । क्योंकि डार्विनवाद के अनुसार मनुष्य का जन्म एक क्रमिक विकास का परिणाम है और कुछ अनीश्वरवादी नास्तिक जो तथाकथित स्वघोषित बुद्धिमान है इसे ही अंतिम सत्य मानते है ये लेख आज उन बुद्धिजीवियों को समर्पित है । तो आइए कुछ तथ्य रखते है --
#डार्विनवाद -- चार्ल्स डार्विन का मत था कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तन द्वारा अपना विकास करती है. विकासवाद कहलाने वाला यही सिद्धांत आधुनिक जीवविज्ञान की नींव बना. डार्विन को इसीलिए मानव इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है।
#डार्विन_के_अनुसार -
पौधों की तरह जीवों का भी यही हाल है, मनुष्य के पूर्वज किसी समय बंदर हुआ करते थे, पर कुछ बंदर अलग से विशेष तरह से रहने लगे और धीरे–धीरे जरूरतों के कारण उनका विकास होता गया और वो मनुष्य बन गए। इस तरह से जीवों में वातावरण और परिस्थितियों के अनुसार या अनुकूलकार्य करने के लिए 'क्रमिक परिवर्तन' तथा 'इसके फलस्वरूप नई जाति के जीवों की उत्पत्ति' को क्रम–विकास या विकासवाद (Evolution) कहते हैं।
#आधुनिक_विज्ञान_का_मत -
वैज्ञानिकों की अवधारणा है कि अणुओं की स्वतः प्रवर्तित पारस्परिक क्रियाओं के कारण कुछ बहुलक आपस में जुड़े और एक कोश जैसी संरचना का निर्माण हुआ। ये कोश पानी में अघुलनशील थे और कुछ रसायनों के लिए अर्ध पारगम्य थे। इस प्रकार कोश का भीतरी भाग एक स्वतः पूर्ण क्षेत्र था जिसके अन्दर स्वतःप्रवर्तन से निर्मित बड़े अणु संचित रह सकते थे। समय के साथ ये बड़े अणु कोशिकीय अंगों में विकसित हो गए। यह भी माना जाता है कि ‘कार्यकारी अणुओं’ (प्रोटीन, उत्प्रेरक) और ‘सूचना अणुओं’ (न्यूक्लिक अम्ल) के कोशों में भी परस्पर सामंजस्य हुआ होगा जिसके फलस्वरूप पहले ‘प्री-साईट’ (एक तरह की कोशिका की पूर्वज संरचना) का जन्म हुआ।
दूसरे मत के अनुसार कुछ बड़े तथाकथित ‘जीवों’ द्वारा छोटे ‘जीवों’ को निगल लिया गया होगा। इन छोटे जीवों में ऑक्सीजन को उपयोग करने की क्षमता थी और ‘मेहमान’ की क्षमता पर ‘मेजबान’ की निर्भरता के बदले उसे पोषण प्रदान किया जाने लगा। समय के साथ ये ‘मेहमान’ कोशिकांग बन गए जिनका कोशिका से अटूट संबंध हो गया।
इस प्रकार की जटिलताओं वाली कोशिकाएं लगभग 1200 लाख वर्ष पूर्व सामने आई थीं। एटनबरो के कलैण्डर के अनुसार ऐसा सितम्बर की शुरूआत में हुआ। और अक्टूबर में, यानि 800-1000 लाख वर्ष पूर्व, जीवन का अगला विकसित रूप, स्पॉन्ज, प्रकट हुआ और इसके बाद तो जैसे एक विस्फोट हुआ और धरती पर विभिन्न प्रकार के अकशेरूकियों की उत्पत्ति हुई।
#संक्षेप_में --
पहले जलचर आये फिर उनसे विकसित होकर उभयचर बने फिर उनसे विकसित होकर थलचर (जिनमे तैरने की छमता थी) फिर उनसे विकास हुआ कपि का(आदि मानव) इनसे विकसित हुए मानव के आदिम पूर्वज(जो कद में छोटे थे) इनसे विकसित हुए नियेंडरथल मानव(जिन्होंने शिकार करना शुरू किया) इनसे विकास हुआ क्रोमैग्नॉन मानव (आधुनिक मानव)
अब जरा हिंदुस्म में हुए अवतारों को एक बार देखते हुए एक तथ्यात्मक तुलना करते है --
1. #प्रथम अवतार -
"#मत्स्य" एक जीव है जो केवल पानी में रहते हैं.. और, वैष्णव के अनुसार धरती पर जीव की उत्पत्ति समुद्र के झाग या मिनरल से हुई थी ।
2. #दूसरा अवतार -
"#कुर्मा"या "#कच्छप" एक जीव है जो पानी और भूमि ( उभयचर ) दोनों जगहों में रह सकता है तथा, इसी प्रकार के जीवोँ से धरती पर अन्य जीवोँ की भी उत्पत्ति मानी जाती है ।
3. #तीसरा अवतार -
"#वाराह" एक जीव है जो केवल जमीन पर रहते हैं ( स्विमिंग करने की क्षमता के साथ )
4. #चौथा अवतार -
"#नरसिम्हा" आधा शेर और आधे मानव एक अवस्था होमो शेपियनंस और जानवरों के बीच की है जिसे आप आदिमानव भी कह सकते हो!
5. #पांचवें अवतार -
"#वामन"छोटे कद के साथ होमो इरेक्टस .
6. #छठा अवतार -
#परशुराम किसी न किसी रूप में कठिन मानव ( कुल्हाड़ी के साथ राम ) आप इन्हें शिकारी मानव भी कह सकते हो!
7. #सातवां अवतार -
#श्री_राम सही सभ्य मानव ( एक धनुष और महान प्रथाओं के साथ राम )
कृपया आठवें और नौवे अवतार के संदर्भ में परेशान न हो दक्षिण भारत और उत्तर भारत की मान्यताओं में थोड़ा फर्क है जहां कृष्ण को आठवें और अयप्पा को 9वे स्थान पे रखा जाता है वही उत्तर में कृष्ण को 8वे और बलराम को नवे स्थान पे ।।
8. #आठवां अवतार -
भगवान #श्रीकृष्ण अलौकिक बुद्धिमता (मूल अभिव्यक्ति) वालेये धरती के प्रखर बुद्धिमता और राज-सत्ता एवं सामाजिक चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं!
9. #नौवां अवतार -
#बलराम व्यावसायिक कौशल के साथ मानव ( हल के साथ बलराम ,कृषि और व्यवसाय को दर्शाते हैं )
नौवां अवतार दक्षिण भारत के विष्णु अवतार मेँ बलराम को कहा जाता है जो कृषक या व्यापारी वर्ग के रक्षक और उनके देवता माने जाते हैँ ।
#विशेष -
अवतारवाद की हिन्दू धर्म में विशेष प्रतिष्ठा है। अत्यंत प्राचीन काल से वर्तमान काल तक यह उस धर्म के आधारभूत मौलिक सिद्धांतों में अन्यतम है। 'अवतार' का शब्दिक अर्थ है - भगवान का अपनी स्वातंत्रय शक्ति के द्वारा भौतिक जगत् में मूर्तरूप से आविर्भाव होना, प्रकट होना। 'अवतार' तत्व का द्योतक प्राचीनतम शब्द 'प्रादुर्भाव' है। श्रीमद्भागवत में 'व्यक्ति' शब्द इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। (10.29.14)। वैष्णव धर्म में अवतार का तथ्य विशेष रूप से महत्वशाली माना जाता है, क्योंकि विष्णु (या नारायण) के पर, व्यूह, विभव, अंतर्यामी तथा अर्चा नामक पंचरूपधारण का सिद्धांत पांचरात्र का मौलिक तत्व है। इसीलिए वैष्णवजन भगवान के इन नाना रूपों की उपासना अपनी रुचि तथा प्रीति के अनुसार अधिकतर करते हैं।
#नोट - अगर आप डार्विनवाद का समर्थन करते हैं तो आपको अवतारवाद पे उँगली उठाने का कोई अधिकार नही ।।
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