भक्ति मार्ग

गीता के आरम्भ में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि:- "#हतो_वा_प्राप्स्यसि_स्वर्ग_जित्वा_वा_भोक्ष्यसे_महीम्।~~(२/३७ गीता) (#अर्थात):- " देख अर्जुन अगर युद्ध करके मारा गया तो स्वर्ग जाएगा, और अगर जीत गया तो राज्य का भोग करेगा। " श्रीकृष्ण ने अर्जुन से ये क्यों कहा कि वो वीरगति को प्राप्त होने के बाद स्वर्ग जाएगा बल्कि उन्होंने ये क्यों नहीं कहा कि वो श्रीकृष्ण के धाम जाएगा ❓❓❓❓❓❓ ~श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गोलोक के बजाय स्वर्ग जाने की बात इसलिए कही क्योंकि:- "पुण्येन_पुण्यं_लोकं_नयति_पापेन_पापमुभाभ्यामेव_मनुष्यलोकम्।"~~ {- प्रश्नोपनिषद् ३.७} (#अर्थात):- " अगर हम पुण्य कर्म करेंगे, कर्म-धर्म का पालन करेंगे, तो स्वर्ग जाएंगे और पाप कर्म करेंगे तो नर्क जाएंगे यानी जितने भी कर्म-धर्म हैं उनका फल स्वर्ग ही तो है इसलिये तो श्रीकृष्ण ने कहा अर्जुन से कि वो स्वर्ग जाएगा क्षत्रिय धर्म का पालन करके " 🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️ तो धर्म भी दो प्रकार के होते हैं- पहला धर्म होता है शरीर का जैसे मैं क्षत्राणी हूँ तो कौन क्षत्राणी है?? मेरा शरीर क्षत्राणी का है ना मेरी आत्मा तो अलग है , तो इस धर्म को कहते हैं वर्णाश्रम-धर्म , मायिक धर्म, शारीरिक धर्म या अपर धर्म भी कहते हैं इसको। इसका फल --केवल और केवल स्वर्ग जैसे ऊपर बताया गया है। 🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️ अब जो लोग धर्म कि परिभाषा देते फिरते हैं आंखे खोलकर पढ़ लें वेद व्यास जी क्या कहते हैं:- "#धर्मं_तु_साक्षाद्भगवत्प्रणीतं_न_वै_विदुर्ऋषयो_नापि_देवा:। #न_सिद्धमुख्या_असुरामनुष्या_कुतश्च_विद्याधरचारणादयः ॥ ~~{६/३/१९ भागवत} (#अर्थात):- " धर्म की परिभाषा तो बड़े-बड़े ऋषि-मुनि ज्ञानी-योगी, तपस्वी भी नहीं दे सकते तो समान्य मनुष्यों की तो औकात ही क्या है " 🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️ अब ये तो हो गई शारीरिक धर्म की बात, अब एक धर्म और होता है जिसे आत्मिक धर्म कहते हैं या दिव्य धर्म या परधर्म या भागवत धर्म; ये सबसे बड़ा धर्म होता है। ~इसका फल है-सदा के लिए भगवान के लोक चले जाना और कभी इस दुखपूर्ण संसार में वापिस नहीं आना। पढ़ते तो बहुत लोग हैं गीता, रामायण पर उन्हें पूरी समझ में नहीं आती ; योग करो ये भी लिखा है, यज्ञ करने के लिए भी कहा है और फिर केवल श्रीकृष्ण की भक्ति करो ये भी लिखा है, बेचारे भोले-भाले लोगों को जितना कंफ्यूजन गीता पढ़ने से पहले नहीं था उतना गीता पढ़ने के बाद हो जाता है 🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️ रामचरितमानस भी कहती हैं:- "#श्रुति_पुरान_बहु_कहेउ_उपाई। #छूटे_न_अधिक_अधिक_अरुझाई।।" #अर्थात-" वेद-पुराण भी अलग-अलग बातें कहते हैं जिसे पढ़कर और अधिक बुद्धि ख़राब हो जाती है आखिर करे तो क्या करे??" 🔸️🔹️🔶️🔷️🔸️🔹️🔶️🔷️🔸️🔹️🔶️🔷️🔸️🔹️🔶️🔷️ तो फिर सबसे बड़ा कल्याण का मार्ग क्या है हमारे लिए ❓❓❓❓❓ चलिए भागवत मे:- यही प्रश्न शौनकादि परमहंस करते हैं सूतजी से कि:- "#भूरीणि_भूरिकर्माणि_श्रोतव्यानि_विभागशः । #अत_साधोऽत्र_यत्सारं_समुद्धृत्य_मनीषया । #ब्रूहि_न_श्रद्दधानानां_येनात्मा_सम्प्रसीदति ॥"" ~~{१/१/११ श्रीमद्भागवत} (#भावार्थ)- """प्यारे सूतजी!! शास्त्र भी बहुत सारे हैं, और उनमे कई सारे मार्ग भी हैं परन्तु उनमें एक निश्चित कल्याण का साधन नहीं है। अनेक प्रकारके कर्मोंका वर्णन भी है। और कर्म-धर्म का फल केवल स्वर्ग ही है साथ ही वे इतने बड़े हैं कि उनका एक अंश सुनना भी कठिन है। आप समस्त शास्त्रों के प्रकांड विद्वान हैं इसलिये वास्तविक और सबसे बड़ा कल्याण का मार्ग बताइए 🟣फिर सूतजी उत्तर देते हैं :- "#स_वै_पुंसां_परो_धर्मो_यतो_भक्तिरधोक्षजे । #अहैतुक्यप्रतिहता_ययाऽऽत्मा_सम्प्रसीदति ॥ ~~{१/२/६ श्रीमद्भागवत} (#भावार्थ)-- """मनुष्योंके लिये सर्वश्रेष्ठ धर्म वही है, वो है भगवान् श्रीकृष्ण में भक्ति हो— भक्ति भी ऐसी हो जिसमें किसी प्रकारकी कामना न हो और जो नित्य-निरन्तर बनी रहे; ऐसी भक्ति करके मनुष्य सदा के लिए आनंदमय हो जाता है भगवान के समान """ 🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️ तो फिर इतने वेद-शास्त्र मे लिखा क्या है❓❓ ~~ब्रह्मा जी ने तीन बार वेदों को मथा यानी अध्ययन किया और ये निष्कर्ष निकाला कि:- "#भगवान्_ब्रह्म_कार्त्स्न्येन_त्रिरन्वीक्ष्य_मनीषया । #तदध्यवस्यत्_कूटस्थो_रतिरात्मन्_यतो_भवेत्॥ ~~{२/२/३४ श्रीमद्भागवत} (#भावार्थ):- "जिससे सर्वात्मा भगवान् श्रीकृष्णके प्रति अनन्य प्रेम हो जाए, वही सर्वश्रेष्ठ धर्म है" 🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️🔷️🔸️ श्रुति माता स्वयं कहतीं हैं:- "#सर्वे_वेदा_यत्पदमामनन्ति (१/२/१५ कठो०)" (#अर्थात):- " वेद का हर एक मंत्र केवल भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए ही संकेत कर रहा है" 🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️🔸️🔹️ जय जय राधाकृष्ण🙏🏻 जय गौमाता

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