स्वर्ग नर्क की सच्चाई
#पाप_करने_के_बावजूद_भी_दुर्योधन_को_स्वर्ग_क्यों_मिला??
क्यों पाप करने के बाद भी दुर्योधन को स्वर्ग मिला?
इसका जवाब थोड़ा आध्यात्मिक है और स्पष्ट भी , कि दुर्योधन ही नहीं जितने भी कौरव थे एवं उनकी जितनी भी सैना थी उन सभी को स्वर्ग मिला , कारण था श्री 'कृष्ण' जिन जिन लोगों ने कृष्ण के विराट स्वरूप का दर्शन किया था ( दुर्योधन की सभा में जब कृष्ण ने अपना विराट रूप प्रकट किया उस समय दुर्योधन ने कहा था ये तो जादूगर है ) उन सभी को ईश्वर का साक्षात्कार हुआ तथा उसी समय वे सभी समस्त पापों से मुक्त हो गये और मरणोपरांत स्वर्ग प्राप्त किया ।
इसका एक और पहलू है , आपने सुना होगा कि युद्ध का पूरा दृश्य देखने वाले श्याम बाबा ( बर्बरीक जो हिडिंबा और भीम के पुत्र गटोतगच्छ के पुत्र थे जिन्हें महाभारत के प्रारंभ में ही कृष्ण ने मार दिया था , चूंकि वे कौरवों का साथ देने के लिये तत्पर थे,तथा वे अत्यंत शक्तिशाली भी थे पर उनकी इच्छा थी कि उनका उद्धार कृष्ण के हाथों ही हो तो जब कृष्ण ने उन्हें मारा तब बर्बरीक ने अपनी इच्छा प्रकट की , कि वो पूरा युद्ध देखकर ही मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं , इसलिए कृष्ण ने उनके सिर को एक ऐसी जगह स्थापित किया कि जहां से वे पूरे युद्ध को देख सकें ) अब युद्ध के अंत में जब सारे पांडवों को कृष्ण बर्बरीक के दर्शन कराने ले के गये तब सभी पांडवों ने बारी बारी से अपने अपने पराक्रम की प्रशंसा करते हुए उनसे पूछा कि हममें से किसका पराक्रम सर्वश्रेष्ठ था ? तब बर्बरीक ने मुस्कुराते हुये उत्तर दिया - कि पूरे युद्ध में मुझे तो आप लोग कहीं दिखे ही नहीं वहां तो सिर्फ कृष्ण ही थे । यानि मरने वाले भी कृष्ण और मारने वाले भी कृष्ण तो मैं कैसे बताऊं किसका पराक्रम सर्वश्रेष्ठ था ।
तो इससे ये पता चलता है कि ये पूरा युद्ध केवल संसार को शिक्षा देने के लिये ही लौकिक धरातल पर लड़ा गया पारलौकिक युद्ध था । जो अधर्म और धर्म पर चलने वालों की गति कैसी होती है ? का पाठ पढ़ाने के लिए हुआ था । ,अर्थात धर्म के साथ ईश्वर स्वयं है और अधर्म बेसहारा है ।ये केवल संसार को आक्रांताओं का हश्र बताने के लिये प्रत्यक्ष रूप से संसार में घटित किया गया
विशेष रूप से मैं ये बताना चाहूंगी ये सभी किरदार भगवान के पार्षद ही थे अतः उन्हें किसी भी प्रकार का दोष छू भी नहीं सकता था ।जैसा अन्य अवतारों में हुआ ? जैसे राम रावण हों या कृष्ण कंस हों या कौरव पांडव हो ये सभी अपनी अपनी भूमिका के हिसाब से कर्म कर रहे थे । वैसे हम लोग भी अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ पृथ्वी पर जन्म लेते है पर हममें और उनमें फर्क सिर्फ इतना है कि वे अपनी भूमिका पूर्ण समर्पण के साथ निभाते हैं और हम माया के वशीभूत हो अपनी भूमिका को ही भूल जाते है ।आपको पता है गीता के तीसरे अध्याय में कृष्ण ने मनुष्यों को भी पृथ्वी का देव कहा है पर अपने देवत्व को भूल हम माइक प्रपंचों में फंस कर स्वयं को ही भूल जाते है और फिर कष्टमय जीवन यहां भी और वहां भी पाने के अधिकारी बन जाते है यानि अपने पतन का कारण हम स्वयं हैं ईश्वर तो कई बार हमें प्रेरणा देता है पर हम मानते ही नहीं बस अपनी ही धुन में रहते हैं जिसके दुष्परिणाम हमें मत्यु उपरांत भोगने पड़ते हैं ।
अब आप कहेंगे कि स्वर्ग नर्क जैसी परिकल्पना से हम इत्तेफक नहीं रखते यानि इसे हम नहीं मानते , तो भैय्या आपने प्रश्न भी तो परालौकिक किया है क्या किसी ने देखा है कि दुर्योधन को स्वर्ग मिला या नर्क ? तो ऐसे प्रश्नों का उत्तर भी पारलौकिक सिद्धांत के आधार पर ही दिया जायेगा ।
कई लोग कहते हैं कि दुर्योधन ने चूंकि पूरा कर्म जो धर्म के विपरीत किया वह पूरी निष्ठा के साथ किया इसलिये उसे स्वर्ग मिला । पर इसका मतलब तो ये है कि आप खूब पाप कीजिये पर उसमें आपकी पूरी निष्ठा होनी चाहिए ? बस ! आपको थाली में परोसकर स्वर्ग मिल जायेगा । पर नहीं ,ऐसा बिल्कुल भी नहीं है बल्कि आप घोर नर्क में गिरेंगे । और आपके कर्म संसार में भय और असुरक्षा का वातावरण पैदा करेंगे । और सबसे बड़ी बात ये है कि हम अपने कुकर्मों के परिणाम यहां भी और मृत्यु उपरान्त भी भोगते ही रहेंगे । इस तरह के उत्तर देने के पीछे उन लोगों का तर्क शायद ये हो कि गीता में कृष्ण ने कहा है कि मनुष्य का पहला धर्म अपने परिवार का पालन-पोषण करना है और यदि वह राहजनी या अन्य किसी तरीके से परिवार का पालन-पोषण करता है तो उसका पाप उसे नहीं लगता चूंकि वो येन केन प्रकारेण वो परिवार के प्रति अपना धर्म निभा रहा है । पर ये आधा सच है । इससे पहले कृष्ण ने कहा है कि जब उस व्यक्ति के द्वारा किये गये सारे प्रयास विफल हो जायें और उसके पास कोई मार्ग ही शेष न रहे तब ऐसी परिस्थिति में जब वो परिवार के दायित्वों को पूर्ण करने के लिये इस प्रकार के कर्मों का आश्रय लेते है तब वो पाप का भागीदार नहीं बनता । यानि हर प्रयास में असफल होने के बाद उसे ये रियायत मिलती है मतलब अकर्म वादी या सुगमता से धन कमाने या शौकिया तौर पर इस प्रकार के कर्म मनुष्य को पापी बनाकर नरकगामी बना देते हैं ।
अब यही सिद्धांत दुर्योधन पर भी लागू होता है , क्या वो परिवार पालने में अक्षम था ? क्या धन कमाने का उसके पास और कोई मार्ग शेष नहीं था ? क्या वो स्वयं को भी नहीं पाल पा रहा था ? नहीं ना , वो हर तरह से सक्षम होने के बाद भी अहंकार और लालच और महत्वाकाक्षा के वशीभूत कर्म कर रहा था जो सामाजिक रूप से निंदनीय हैं और धोर पाप की श्रेणी में उसे लाकर खड़ा करते हैं ।
तो इस प्रश्न का उत्तर सिर्फ आध्यात्मिक विश्लेषण से ही प्राप्त हो सकता है । और विश्लेषण करने पर यही उत्तर मिलता है कि ये केवल अलौकिक लीला थी जो लौकिक जगत में खेली गई ताकि मनुष्य इससे शिक्षा प्राप्त करें । इसलिये दुर्योधन या अन्य सैनिकों तथा पांडवों को स्वर्ग मिला नहीं ? वरन वो वापस अपने लोक में लौट आये । बिल्कुल वैसे ही जैसे कि जब हम कुछ शिक्षाप्रद नाटकों का मंचन करते हैं और शो समाप्ति के बाद सभी कलाकार अपने अपने घरों को लौट जाते हैं ।
इसीलिए संत महात्मा कहते हैं कि केवल कथा मत बांचिये वो कथा आपसे क्या कहना चाह रही है उसे समझने की कोशिश करिये ।
बस एक विनती है कि जब भी आप प्रश्न पूछें तो ये सोच विचार कर पूछें कि आपके द्वारा पूछा गया प्रश्न भौतिकवादी है या पारलौकिक ? चूंकि हम भौतिक जगत के प्राणी है हमें नहीं पता स्वर्ग नर्क क्या होता है पर ग्रन्थों के अध्ययन ने ये पता अवश्य कर सकते हैं । कि जो भी जीव चौरासी लाख योनियों में से किसी भी योनि में वापस आता है ? तो उसका मोक्ष नहीं होता और यदि वह लौट कर नहीं आता तो वो मोक्ष है । जिसमें हम भी शामिल हैं क्योंकि जब हम यहां मौजूद हैं ? मतलब हमारा भी मोक्ष नहीं हुआ तभी तो हम यहां हैं ।ये घटनायें हमारा सिर्फ मार्ग दर्शन करतीं हैं । और कृष्ण को समझाने का प्रयास करतीं हैं । जिससे हम शिक्षित हो अपना कल्याण कर सकें ।
नोट - महाभारत भौतिक जगत में पनप रहे अति महत्वाकांक्षी , लालच और अहंकार के परिणाम को दर्शाती गाथा है । जिसमें कृष्ण की शरणागति ही इससे छुटकारा दिलाने का एक मात्र साधन है । वास्तव में आपने इतना बड़ा प्रश्न पूछ लिया है कि जिसकी व्याख्या मुझे अभी भी अधूरी ही लग रही है चूंकि अभी और भी बहुत कुछ कहना चाहती हूं पर यदि कहना शुरू किया तो पूरी किताब ही लिख जाऊंगी 😁😁 इसलिये आप इसका उत्तर संक्षेप में ही समझ लें यदि कोई जिज्ञासा हो तो फिर जानलें मै तत्पर हूं ।
राधे राधे
।।अल्का राज।।
सुनने में काफी अजीब लग रहा होगा कि आखिर एक पापी कैसे स्वर्ग में जा सकता है। लेकिन आपको बता दूं कि ये बिल्कुल सही है। आइये जानते हैं इसके पीछे के छिपे रहस्य के बारे में।
महाभारत के युद्ध मे कौरव के मारे जाने के बाद जब इस युद्ध की समाप्ति हुई तब पांडव कुछ समय तक राज्य करके हिमालय पर चले गए। और वहां पर एक एक करके सभी भाई गिर गए। अकेले युधिष्ठिर अपने एक मात्र साथी कुत्ते के साथ बचे रहे और वे सीधे स्वर्ग चले गए। ऐसा माना जाता है कि युधिष्टिर जीवित ही स्वर्ग गए थे और वहां उन्होंने स्वर्ग और नर्क दोनों का दर्शन किया। स्वर्ग में प्रवेश करते ही दुर्योधन दिखाई दिया और अपने भाइयों से भी उनका सामना हुआ।
स्वर्ग और नर्क की व्याख्या गरुड़ पुराण में अच्छी मिलती है। कहते हैं कि जब आप मरते हैं तो आपकी आत्मा या तो मोक्ष पाती है या पितर लोक जाती है और पितरों के साथ समय बिताती है एवं अगले जन्म का इंतजार करती है। तो पितर लोक तक जाने का सिस्टम 2 रास्तो से है एक है आराम वाला और दूसरा दर्दनाक। तो अगर आपने ज्यादा पाप किए हैं तो आपके दर्द वाले रास्ते से जाना होगा जहां हर कदम पर आपको यातना मिलेगी, भूखे प्यासे आगे चलना होगा , जिसे नर्क कहा गया है। और अगर अपने पुण्य किए होंगे तो आपको स्वर्ग वाला रास्ता मिलेगा जहां फलदार पेड़, छाया, ठण्डी हवा मिलेगी।
महाभारत युद्ध के बाद कौरवों को स्वर्ग और पांडवों को नर्क क्यों मिला?
दुर्योधन के चरित्र की अच्छाइयां क्या थीं?
दुर्योधन इतना पाप करने के बाद भी स्वर्ग क्यों गया? क्या यह अधर्म नहीं??
संत के अतिरिक्त अन्य सभी लोगों से पाप और पुण्य; दोनों प्रकार के कर्म होते हैं। जो पापी है वह भी कभी न कभी कोई पुण्य का कार्य कर लेता है। उसी तरह जो पुण्यात्मा है उनसे भी कभी न कभी कुछ अपकर्म हो जाता है। पुण्य का फल स्वर्ग और पाप का फल नर्क माना गया है। दुर्योधन भी अपने किए हुए किसी शुभ कर्म के कारण स्वर्ग को प्राप्त किया होगा।
कर्मफल के विधान में एक और प्रावधान है। यदि किसी व्यक्ति का पुण्य अधिक हो और पाप कम हो तो सबसे पहले वह पाप का फल (नरक) भोगता है। फिर उसके बाद लंबे समय के लिए पुण्य का फल स्वर्ग भोगता है। यदि किसी व्यक्ति का पाप अधिक हो और पुण्य कम हो तो सबसे पहले वह है पुण्य का फल (स्वर्ग)
दुर्योधन पापी था। लेकिन उसे स्वर्ग लोक मिला। इसका कारण यह भी है कि, जो भी उनके सभा में मौजूद थे, वह महाज्ञानी,विव्दान और पुण्य संग्रही लोक थे। महाप्रतापी भिष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और श्रीकृष्ण इनका संपर्क बार बार आया था। कभी कभी सुसंगती भी पुण्य की भागीदार बनती है। दुर्योधन वैसे भी महापराक्रमी था। गदा युद्ध में अग्रणी था। श्री बलराम का शिष्य था। और मृत्यु के समय श्रीकृष्ण वहां पर मौजूद थे। मृत्यु भी हुई तो भीम के साथ युद्ध करके, इसका मतलब साफ है कि, दुर्योधन की मृत्यु भी रण करते हुए रणागंण में हुई थी। इसलिए दुर्योधन को स्वर्ग लोक प्राप्त हुआ। धन्यवाद जवाब अच्छा लगे तो अपवोट करना ना भूले।
आप अगर बैंक से कर्ज लेते है तब आपका सिबिल स्कोर देखा जाता है कि आप को कर्ज दिया जा सकता है या नही अगर पर्याप्त स्कोर नही होता है तब बैक कुछ तात्कालिक उपाय बताता है की आप का स्कोर कंसीडर लायक हो जाए। आप सोच रहै होगे मैने पूछा क्या और बता क्या रहे है।
ठीक इसी तरह हमारे जन्म जन्मांतर के अच्छे कर्मो के हिसाब जुडता रहता है। इसी हिसाब मे यदि कुछ गडबड होकर इस जन्म मे पाप कर्म जुड जाए तो हिसाब मे कमी होगी लेकिन स्कोर फिर भी अच्छा ही रहेगा।
इसीलिए मैने ऊपर बैक लोन का उदाहरण दिया। जिसका बल ज्यादा होगा वह पहले अपना प्रभाव दिखाएगा। चाहे पुण्य हो या पाप।
दुर्योधन ने पाप तो किया लेकिन उसका पुण्य पाप से ज्यादा था ईसलिए पहले इस जन्म मे मृत्यु के बाद पुण्य के कारण स्वर्ग मिला। जब पाप की ताकत ज्यादा हो जाएगी तब वह स्वर्ग नही जा पाऐगी।
दुर्योधन ने पाप नही, अपमान किया था। द्वेष व इर्ष्या की भावनात्मकता से क्रोध किया।
पहले पाप-पुण्य को जान ले।
पाप तो सोते हुए भी हो सकता है परन्तु पुण्य सिर्फ जागते हुए ही हो सकता है।
पाप हमारे मन (आत्मा), वचन (वाणी), कर्म (शरीर) द्वारा हो जाता है। परन्तु पुण्य हमारे मन(आत्मा) और शरीर(कर्म) द्वारा ही संभव है। पुण्य कर्म मे मोन धारण होता है। मन शांत व शरीर सुखद होता है।
दुर्योधन धर्मक्षेत्र कुरूक्षेत्र की रणभूमीपर भीम से गदायुध लडते हुए धारातीर्थ पड गया.. भगवान श्रीक्रुष्ण की युध्दभूमी मे उपस्थिती होने के कारण और इस धर्मयुध्दमे जो कोई लडते हुए म्रुत्यू को प्राप्त होगा वह स्वर्ग को प्राप्त हो जाएगा… ऐसा भगवान श्रीक्रुष्ण ने पहलेही सभी योध्दाओंको आश्वासित किया था…
इसिलिए दुर्योधन भी मरने के बाद उत्तम गति को प्राप्त हुआ… और उसे स्वर्गप्राप्ती हुई.
दुर्योधन को बचपन से ही सही संस्कार प्राप्त नहीं हुए इसलिए वह सच का साथ नहीं दे पाया। लेकिन मार्ग में चाहे कितनी ही बाधएं क्यों ना आई हों, दुर्योधन का अपने उद्देश्य पर कायम रहना, दृढ़संकल्पित रहना ही उसकी अच्छाई साबित हुई और इसी कारण उसे सारे अधर्म कार्य करने के पश्चात भी स्वर्ग मिला नरक नही।
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