सत्यार्थप्रकाश_का_असत्य भाग ― 5
मंत्रो के अर्थ में दयानंद जी की मनमानी दयानंद जी सत्यार्थ प्रकाश में मंत्रों के अर्थ लिखने में बड़ी चतुराई दिखाते हैं उनकी चतुराई को समझने का प्रयास करें मंत्र देखे भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री । पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ ँ्ह पृथिवीं माहि ँ्सीः उनके अनुसार इस मंत्र का अर्थ देखें :- जिसमें सब भूत प्राणी होते हैं इसलिए ईश्वर का नाम भूमि है शेष नामों का अर्थ आगे लिखेंगे। मंत्र के वास्तविक अर्थ पर भी दृष्टि डालें। हे स्वयंमातृण्णे ! तुम (भूः) सुखो की भावना करने वाली हो। (भूमि) भूमिनाम से प्रसिद्ध हो। (अदिति) देवमाता हो ।(विश्वधाया)विश्व को पुष्ट (धारण) करने वाली हो।(विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री)सम्पूर्ण संसार को धारण करने वाली हो । पृथ्वी को कृपा करके देखो भूमि भागों को दृढ़ करो पृथ्वी को मत पीडा दो। दयानंद जी ने मंत्र का क्या अर्थ किया है।कुछ समझ नहीं आता यदि इस मंत्र में सभी नाम ईश्वर के है तो इस मंत्र का क्या अर्थ रह जायेगा। अब आप अगले मंत्र के दयानंदी अर्थ पर भी विचार करें। इन्द्रो मह्ना रोदसी पप्रथच्छव इन...