ईश्वर और विज्ञान
*वैज्ञानिक दार्शनिक संवाद,
दार्शनिक - अच्छा, क्या आप शब्द प्रमाण को भी स्वीकार करते हैं?
वैज्ञानिक - नहीं । हम शब्द प्रमाण को स्वीकार नहीं करते।
दार्शनिक - क्या आपने इलेक्ट्रॉन को आज तक कभी देखा है?
वैज्ञानिक - नहीं देखा।
दार्शनिक - क्या आपने कभी प्रयोगशाला में इलेक्ट्रॉन पर कोई प्रयोग किया है?
वैज्ञानिक - नहीं किया।
दार्शनिक - इलेक्ट्रॉन में नेगेटिव चार्ज होता है या पॉजिटिव?
वैज्ञानिक - नेगेटिव चार्ज होता है।
दार्शनिक - जब आपने इलेक्ट्रॉन को आज तक प्रत्यक्ष भी देखा नहीं, और प्रयोगशाला में अनुमान प्रमाण से उस पर कोई प्रयोग भी नहीं किया, तो आपको कैसे पता चला कि इलेक्ट्रॉन में नेगेटिव चार्ज होता है?
वैज्ञानिक - हमने विज्ञान की पुस्तकों में पढ़ा है। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में परीक्षण करके बतलाया है, कि इलेक्ट्रॉन में नेगेटिव चार्ज होता है।
दार्शनिक - तो इसका अर्थ है आपने बड़े बड़े वैज्ञानिकों के शब्दों को प्रमाण के रूप में मान लिया। *आपने उनके शब्दों को प्रमाण माना, यही तो शब्द प्रमाण है। फिर आप क्यों कहते हैं, कि हम शब्द प्रमाण को नहीं मानते।*
और यदि भविष्य में आप भी कोई पुस्तक विज्ञान विषय पर लिखेंगे और आपके विद्यार्थी उसे पढ़ कर आपकी बात को प्रमाण मानेंगे।
तो क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि विज्ञान वाले लोग भी शब्द प्रमाण को स्वीकार करते हैं?
वैज्ञानिक - हां, अब मैं समझ गया, कि हम शब्द प्रमाण को भी मानते हैं।
दार्शनिक - ठीक है। तो अब हम शब्द प्रमाण से भी ईश्वर की सत्ता को सिद्ध करेंगे।
यदि कोई गणित का प्रश्न हो, तो उसे सत्य सिद्ध करने के लिए कौन सी पुस्तक का शब्द प्रमाण स्वीकार्य होगा?
वैज्ञानिक - गणित की पुस्तक का।
दार्शनिक - क्यों?
वैज्ञानिक - क्योंकि वह विषय गणित की पुस्तक में लिखा है।
दार्शनिक - ठीक है। यदि भौतिक विज्ञान का प्रश्न हो, जैसे कि चुंबक की विशेषताओं को सिद्ध करना हो, तो इसे सिद्ध करने के लिए कौन सी पुस्तक का शब्द प्रमाण मान्य होगा? वैज्ञानिक - भौतिक विज्ञान की पुस्तक का। दार्शनिक - सही है। जैसे पहले आपने भौतिक विज्ञान की पुस्तक का प्रमाण स्वीकार किया था, कि इलेक्ट्रॉन में नैगेटिव चार्ज होती है। ठीक इसी प्रकार से यदि ईश्वर विषय को शब्द प्रमाण से सिद्ध करना हो, तो कौन सी पुस्तक का शब्द प्रमाण मान्य होगा? वेदों का। क्योंकि ईश्वर का विषय वेदों में लिखा है। इसलिये वेदों के वचन इस विषय में शब्द प्रमाण माने जाएंगे। तो अब हम वेदों का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
*ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत् ।।* यह यजुर्वेद के अध्याय 40 का मंत्र 1 है।
इस मंत्र में कहा है कि *ईश्वर इस संपूर्ण जगत् में व्यापक है, अर्थात सर्वत्र विद्यमान है.*
*यह वेद का शब्द प्रमाण है। इससे ईश्वर की सत्ता सिद्ध होती है।*
वैज्ञानिक - हम ईश्वर की सिद्धि में इस शब्द प्रमाण को नहीं मानते।
दार्शनिक - पहले तो आप कह रहे थे कि हम शब्द प्रमाण को मानते हैं, और आपने अपने विज्ञान के क्षेत्र में तो विज्ञान की पुस्तकों के शब्द प्रमाण माने भी थे। परंतु अब हमारे ईश्वर विषय में जो शब्द प्रमाण है, वेदों के वचन। अब आप उनको प्रमाण नहीं मान रहे। यह तो न्याय नहीं है, बल्कि अन्याय है।
वैज्ञानिक - जो भी हो। हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते।
दार्शनिक - क्यों नहीं कर सकते?
वैज्ञानिक - यदि हम इस प्रकार से ईश्वर को स्वीकार कर लेंगे, तो हमारे ही साथी दूसरे वैज्ञानिक लोग हमें मूर्ख और पागल कहेंगे। क्योंकि बहुत लम्बे समय से, किसी भी वैज्ञानिक ने ईश्वर को स्वीकार नहीं किया है।
दार्शनिक - यह तो आप वैज्ञानिक लोगों का हठ कहलाएगा, कि आप प्रमाणों से सिद्ध सत्य को भी स्वीकार नहीं करते। लोग आपको हठी कहेंगे।
वैज्ञानिक - कोई बात नहीं। लोग हमें हठी कहेंगे, तो हम सुन लेंगे।
दार्शनिक - अच्छा, मेरा एक छोटा सा प्रश्न है। इसका उत्तर सोच कर बताएं। यदि कोई गांव का व्यक्ति जो स्कूल में पांच कक्षा तक ही पढ़ा हो। और उसने आपका भौतिक विज्ञान कुछ विशेष न पढ़ा हो, कुछ इधर उधर से उड़ती उड़ती बातें सुन ली हों। यदि वह ऐसा कहने लगे कि *हम इलेक्ट्रॉन को नहीं मानते। क्योंकि उसे आज तक किसी ने देखा तो है नहीं।* तो आप उस को किस दृष्टि से देखेंगे, और उसे कैसा मानेंगे?
वैज्ञानिक - हम उसे अज्ञानी और मूर्ख मानेंगे।
दार्शनिक - आप उसे अज्ञानी और मूर्ख क्यों मानेंगे?
वैज्ञानिक - हम उसे अज्ञानी और मूर्ख इसलिए मानेंगे, क्योंकि जब तक वह भौतिक विज्ञान का अध्ययन न कर ले, तब तक उसे भौतिक विज्ञान के विषय इलेक्ट्रॉन का खंडन करने का अधिकार नहीं है। और वह बिना अधिकार के इलेक्ट्रॉन का खंडन करता है, इसलिए वह अज्ञानी और मूर्ख माना जाएगा।
दार्शनिक - आपने बिल्कुल सही कहा। परंतु जरा शांति से विचार करें, कि कहीं यही बात आप पर भी तो लागू नहीं होती? अर्थात्
*क्या आपने वेदों का अध्ययन कर लिया है? यदि नहीं किया, तो आप भी वेदों का अध्ययन किए बिना ही, ईश्वर का खंडन करते हैं, तो संसार के बुद्धिमान लोग आपको भी क्या वैसा (मूर्ख और अज्ञानी) नहीं मानेंगे? आप और आपके दूसरे वैज्ञानिक भी, भौतिक विज्ञान को इतना पढ़ने के बाद भी, ऐसे ही (मूर्ख और अज्ञानी) माने जाएंगे।*
अब कृपया शांत चित्त से विचार करें। यदि आप वैज्ञानिक लोग ऐसे ही हठ पर अड़े रहेंगे, तो कुछ ही समय में आप की प्रतिष्ठा संसार में कैसी बनेगी? *संसार के बुद्धिमान लोग आपको भी तो ऐसे ही (मूर्ख और अज्ञानी) मानेंगे।*
वैज्ञानिक - तो आप स्पष्ट बताएं, कि आप कहना क्या चाहते हैं?
दार्शनिक - हम यह कहना चाहते हैं, यदि आप इस संसार में ज्ञानी, विद्वान और बुद्धिमान कहलाना चाहते हैं, तो आपको पहले वेदों का अध्ययन करना होगा।
*वेदों का अध्ययन करने के बाद ही, आप ईश्वर के विषय में कुछ कह सकते हैं। जब तक आप वेदों का अध्ययन नहीं कर लेते, तब तक आप को भी ईश्वर का खंडन करने का कोई अधिकार नहीं है।*
इसलिए बुद्धिमत्ता इसी बात में है, कि जो ईश्वर, अनुमान प्रमाण से तथा शब्द प्रमाण से सिद्ध होता है, उसे ईमानदारी से स्वीकार करें। वेदों का अध्ययन करके, ईश्वर तथा ईश्वर के कार्यों के विषय में और अधिक जानें। उसकी सृष्टि रचना व्यवस्था एवं कर्मफल व्यवस्था को समझकर, उसके आदेश निर्देश का पालन करें। तभी आपका यह सारा परिश्रम और जीवन सफल होगा। इसी से आपका और सब जगत् का कल्याण होगा। अन्यथा नहीं।
वैज्ञानिक - ठीक है। अब हम अपना हठ छोड़कर वेदो का अध्ययन करेंगे , और उसके बाद ही ईश्वर के विषय में कुछ बोलेंगे। दार्शनिक - अब आपने हठ को छोड़कर सत्य को स्वीकार किया। इसके लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद। 🙏🌺🌷🙂✋
*और जब आप वेदो का अध्ययन कर लेंगे, तब आप ईश्वर का खंडन नहीं, बल्कि मंडन ही करेंगे। जैसे हम भौतिक विज्ञान का अध्ययन करने के बाद इलेक्ट्रॉन का खंडन नहीं करते, बल्कि मंडन करते हैं।*
*ईश्वर आपको तथा आपके सब वैज्ञानिकों को सद्बुद्धि प्रदान करे। हमारी ओर से ईश्वर से यह प्रार्थना है, कि आप सत्यग्राही बनें, ईश्वर की आज्ञा का पालन करके सब प्रकार से अपना तथा संसार का कल्याण करें। आप सब वैज्ञानिकों के लिए हमारी ओर से बहुत शुभकामनाएं।*
*लेखक -- स्वामी विवेकानंद
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