हनुमान का सूर्य निगलना
---------------------------#खण्डन ----------------------------
---------#हनुमानजीद्वारा_सूर्य_को_निगला_जाना--------
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कुछ दिन पहले ईसाइयो के एक ग्रुप में इस बात को लेकर हिन्दू धर्म का उपहास उड़ाया जा रहा था -
हिन्दुओ के वैदिक साहित्य में एक उल्लेख मिलता है जिसमे इनके एक पूछ वाले देवता ने पृथ्वी से कई गुना बड़े सूर्य को मुँह में रख लिया वो भी फल समझ कर ।।
पूर्व में ऐसे ही तमाम दुष्प्रचारों का मैंने खंडन किया है , वैदिक साहित्य में उल्लेखित इस घटना के दुष्प्रचार का खंडन काफी दिनों से करने की सोच रहा था और कई मित्रो ने इसपर लिखने को कहा लेकिन समयाभाव के कारण स्टडी नही कर पा रहा था इसलिए लिख नही पाया , तो चलिए करते है विधर्मियों का खंडन -
#एक_दोहा है जो हम जनमानस में काफी प्रचलित है कि -
जुग (युग) सहस्त्र जोजन (योजन) पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
इस दोहे को बड़े गर्व के साथ हम प्रस्तुत करते है कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी सैकड़ो सालो पहले ही वैदिक साहित्य में उल्लेखित है , लेकिन जैसे ही इस दोहे की दूसरी लाइन के संदर्भ में पूछा जाता है कि कैसे कोई इतने बड़े सूर्य को फल समझ के खा सकता है ??
---------------------#वैज्ञानिक_दृष्टिकोण --------------------
हनुमान जी द्वारा सूर्य निगलने की कथा के जैसी ही एक और पैराणिक कथा आप लोगो ने और सुनी होगी - अगस्त्य द्वारा समुद्र को पी लेने की इसका भी खंडन साथ साथ कर लेते है -
यह कहानी भी वास्तव में अंतरिक्ष के अगस्त्य तारे से जुड़ी हुई है। अगस्त्य ऋषि द्वारा खोजे जाने के कारण इस तारे का नाम अगस्त्य तारा पड़ा। अंतरिक्ष के पिंडो के नाम ऐसे ही उनके खोजकर्ताओं के नाम पर ही उनके नाम रखे जाते हैं। बुध नाम के ऋषि ने बुध ग्रह को खोजा। इसी प्रकार शुक्र ऋषि ने शुक्र का और वृहस्पति ऋषि ने वृहस्पति की खोज की थी। यह अगस्त्य तारा हमारे सूर्य से सौ गुणा बड़ा है। अगस्त्य तारा दक्षिण में उगता है। यह मई में अस्त हो जाता है। यह तब उदय होता है जब सूर्य दक्षिणायण होते हैं। तो एक तो सूर्य की सारी उष्मा दक्षिण की ओर जा रही है, दूसरी ओर अगस्त्य की उष्मा भी आ रही है। दोनों की संयुक्त उष्मा पृथिवी के दक्षिण में पड़ती है। हम जानते हैं कि सारे समुद्र दक्षिण में ही हैं। उन दोनों की उष्मा के कारण समुद्र से वाष्पीकरण होने लगता है। सूर्य जनवरी में उत्तरायण हो जाते हैं, परंतु अगस्त्य तारा मई तक रहता है, तब तक वाष्पीकरण की प्रक्रिया चलती रहती है। इसे ही अगस्त्य का समुद्र पीना कहा जाता है। यह एक पर्यावरणीय घटना है। जैसे ही अगस्त्य तारा अस्त होता है, वाष्पीकरण की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। इस तरह अगस्त्य जी द्वारा समुद्र को पिया जाता है पुनः उसे छोड़ा जाता है अब आइये सूर्य ग्रहण करने को चलते है ।
----------- #पूर्ण_सूर्य_ग्रहण - #सूर्य_निगलना -----------
ऐसी ही घटना है पूर्ण सूर्य ग्रहण , सूर्य के ग्रहण होने पर या निगले जाने से पूर्णअंधकार छा जाता है जिसे पिछले पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय लोग देख चुके हैं और पूरे विश्व के वैज्ञानिक भी।ग्रहण का प्रभाव हर जीव जन्तु, मनुष्य, तथा अन्य ग्रहों पर पड़ता है। गुरुत्वाकर्षण घटने या बढऩे से धरती पर भूकंप आने की संभावना ग्रहण के 41 दिन पहले या बाद तक रहती है या ये कह ले कि पूर्ण सूर्यग्रहण के समय दिन में ही रात्रि हो जाती है और सूर्य के न दिखने से जीवो का विचलित होना स्वाभाविक है जैसा उल्लेख वैदिक साहित्यो में मिलता है ।
बाल समय रवि भक्ष लियो, तब तिनहुं लोक भयो अंधियारो ।
ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहू सो जाता न टारो ।
देवन आनी करी विनती तब, छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।।
खगोलीय स्थितियों की वास्तविक तिथियां ‘प्लैनेटेरियम साफ्टवेयर’ के माध्यम से जानी जा सकती है। इसके द्वारा उन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित खगोलीय स्थितियों के आधार पर आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर की तारीखें निकाली गयी है।किसी एक समय पर बारह में से छह राशियों को ही आकाश में देखा जा सकता है। वाल्मीकि रामायण में हनुमान के लंका से वापस समुद्र पार आने के समय आठ राशियों, ग्रहों तथा नक्षत्रों के दृश्य को अत्यंत रोचक ढंग से वर्णित किया गया है। रामायण के अन्य अध्यायों में महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित ग्रहों की स्थिति के अनुसार कई बार दूसरी घटनाओं की तिथियां भी साफ्टवेयर के माध्यम से निकाली गई है , इस तिथियों के अनुसार सौरग्रहण की खगोलीय घटना की वैज्ञानिक पुष्टि भी होती है ।
बन्दर जैसे भूरे या ताम्बे जैसे भूरे रंग को कपिल कहते हैं , तांबे के लिए अंग्रेजी में कॉपर copper शब्द संस्कृत के कपिल शब्द से ही बना है पूर्ण सूर्यग्रहण के समय उसका रंग तांबे जैसा ही हो जाता है , कपिल बंदर को भी कहा जाता है । इस संदर्भ में एक पौराणिक वर्णन भी मिलता है कि - एक समय महर्षि लोमश, महर्षि काकभुशुण्डि महाराजा जामवन्त और प्रभु हनुमान एक स्थली पर विद्यमान थे। हनुमान जी बोले कि-प्रभु!मै सूर्य विद्या को ग्रहण (निगलना) चाहता हूँ कैसे इसे ग्रहण करू ? इसपर काकभुशुण्डि जी ने कहा कि-‘’तुम विज्ञान के माध्यम से ग्रहण करना चाहते हो या योग अभ्यास के द्वारा, या प्राणो के द्वारा ग्रहण करना चाहते हो? प्रभु हनुमान ने कहा-कि मै दोनो प्रकार से ग्रहण करना चाहता हूँ। फिर महर्षि काकभुशुण्डि प्रभु हनुमान को सूर्य के विषय मे पूर्ण ज्ञान देते है । सूर्य को ग्रहण करने का एक उल्लेख ऐसा भी मिलता है ।
अभी तक ज्ञात सभी तत्व परमाणुओं से बने हैं और यह परमाणु हमारे शरीर का निर्माण करते हैं, हर परमाणु का एक प्रतिशत हिस्सा प्रोटोन, न्युट्रोन और इलेक्ट्रान से बना हैं और उसका 99% भाग खाली है , पृथ्वी पर जितने भी मनुष्य हैं उनके शरीर के तमाम परमाणुओं के बिच की खाली जगह निकल दे तो उनकी साइज़ एक चीनी के दाने जितनी हो जायेगी, और यदि परमाणुओं के बीच की दूरी को बढ़ा दिया जाए तो सोच से भी कही ज्यादा विशालता पायी जा सकती है , समग्र ब्रह्माण्ड में 100 अरब आकाशगंगाए हैं ऐसा अनुमान है और प्रत्येक आकाशगंगा में 100 अरब तारे हैं, आप एक बार इस विशाल संख्या के बारे में सोचकर देखिए, आपको पता है इंसानी मष्तिष्क में भी 100 अरब न्युरोंस होते हैं, जिस तरह एक आकाशगंगा में 100 अरब तारे होते हैं उसी तरह एक इंसानी मस्तिष्क में 100 अरब न्युरोंस होते हैं, यहाँ पर कोई भी एक न्युरोंन दूसरे हजारो न्युरोंस के साथ कनेक्शन बना देता हैं और electrical impulse की मदद से सन्देश को भेजते और ग्रहण करते हैं , संचार के दौरान इसकी हर कोशिका चमक उठती हैं जैसे रात में आसमान चमक उठता हैं, जैसे सूर्य उदय होता है वैसे ही न्यूरो ट्रांसमिशन के दौरान भी वही घटना होती है इन सबका इस पोस्ट से क्या तात्पर्य यही सोच रहे होंगे आप -
तो आप इसे इस तरह समझिए कि - क्या ईश्वर (क्रिएटर) के समक्ष हम उसी चीनी के दाने जैसे नही हो सकते क्या जैसे हमारे लिए आकाश गंगा इतनी विशाल है अनंत जैसी और उसका एक छोटा सा प्रतिरूप हमारा ब्रेन है क्या हम उस महान निर्माणकर्ता के एक अंश नही हो सकते ???
#विशेष -
कण कण में ईश्वर का वाश होता है वैदिक साहित्यो में ऐसे ही नही कह दिया गया है । भौतिकी व ब्रह्माण्ड वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग की अगुवाई में “Big Bang Theory” के ‘महाप्रयोग’ से होता हुआ आखिर ‘गॉड पार्टिकल्स’ पर आ पहुंचा है। यानी ‘विज्ञान-विज्ञान’ कहते हुए आखिर मानव सभ्यता विज्ञान द्वारा अन्धविश्वास कहे जाने ‘ईश्वर’ की शरण में ही आकर ठिठक गयी है। हालाँकि यह भी कहा जाता है की Scientific determination (वैज्ञानिक दृढ़ संकल्प) की सर्वप्रथम बात करने वाले ‘ला प्लाज’ से नेपोलियन बोनापार्ट (15 अगस्त 1769-5 मई 1821) ने सवाल किया था- “ईश्वर तुम्हारे (विज्ञान के) System में कहाँ और कैसे Fit होता है ?” यानी विज्ञान का ईश्वर से संघर्ष अपने जन्म से रहा है। आगे भी अल्बर्ट आइंस्टीन ने ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में मार्क प्लांक की ‘क्वांटम थ्योरी’ को आगे बढ़ाते हुए ईश्वर पर टिप्पणी की थी-“God does not Play Dies (पाशे) ” और माना था कि ईश्वर की सत्ता को चुनौती नहीं दी जा सकती है, जबकि स्टीफन हॉकिंग ने अब जाकर उनकी बात को यह कहते हुए आगे बढ़ाया कि, “ईश्वर न केवल हमारे साथ पाशे खेलता है, वरन कभी-कभी वह पाशों को कुछ ऐसे स्थानों पर भी फेंक देता है, जहाँ हम उन्हें ढूंढ नहीं पाते”। गौरतलब है की स्टीफन यहाँ ‘गॉड पार्टिकल्स’ की बातें कर रहे थे, जिन्हें आखिर खोजने के दावे किये गए।।
ईश्वरीय सत्ता से हम सिर्फ सीख सकते है, वर्षो से बन्द ज्ञान के भंडार वैदिक साहित्यो को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यदि खोला जाए तो उसमें विज्ञान का अथाह भंडार मिलेगा और शायद मानव का अस्तित्व भी !!!!
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