सत्य

ऋक् मन्त्रों में इन्द्र-मरुत स्वरूप में हनुमानजी का अन्तर्भाव ।

*महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमित के संगी ।।*
*कंचन बरन बिराज सुबेसा कानन कुंडल केसा ।।*
*हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै काँधे मूँज जनेऊ साजै ।।*
*संकर सुवन केसरीनंदन तेज प्रताप महा जग बंदन ।।*

*ॐ सनोवृषावृषरथ:सुशिप्रवृषक्रतोवृषावज्रिन्मरेधा: ।* (ऋग्वेद ४/५/३६/ ५)  भाष्यार्थ:- 'हे शोभन हनु ( शिप्रहनु नासिके वा-निरुक्ति ) अर्थात् सुन्दर ठोड़ी वाले ,हे वज्रधारी परमात्मन् ! हनुमाञ्जी ! तुम्हारी रथ कल्याणवर्षी है । संग्राम में तुम हम लोगोंकी रक्षा करो ।'

इन्द्र मरुतोंमें अधपति हैं ,और मरुतों को इन्द्रका सहायक कहा गया है ,मरुद्गणों से बल पाकर इन्द्र उद्भासित होते हैं-
*श्रुतरथायमरुततोदुवोया ।*(ऋग्वेद ४/५/३६/६) -(सायणभाष्य- मरुतइन्द्रसहायभूतानांमरुतांसंबोधनम् ) अर्थात् मरुद्रगणों के अधिष्ठान इन्द्र परमात्मा मरुतों से बल प्राप्त करते हैं ,और हनुमानजी भी मरुत (वायु) के अधिष्ठान होकर वायु (मरुत) से बल प्राप्त करके मारुति कहलाते हैं । ऋग्वेद में मरुतों को रुद्रपुत्र कहा गया है -
*मारुतंशर्धोअच्छारुद्रस्यसूनूँ ।*(ऋग्वेद ४/५/४२/१५)  हनुमानजी भी इसलिए सङ्कर सुवन मारुति कहलाते हैं ।
*हिरण्यवर्णदुष्टारम् ।*(ऋग्वेद ४/५/३२/२) में इन्द्र परमात्मा को हिरण्यवर्ण कहा गया है और कंचन बरन बिराज सुबेसा हनुमानजी भी हिरण्यवर्ण हैं ।

वेदों में सर्वत्र इन्द्र को *वज्रदद्योद्वरिष्ठा:सइन्द्र* (ऋ०४/६/१७/२) *वृषावज्रिन्मरेधा: ।*(ऋ०४/५/३६/५)हाथ में वज्र धारण करने वाले कहा गया है ,तो हनुमानजी को भी हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै कहकर स्तुति की गई है ।

*अवि:सूर्यंकृणुहिपीपिहीषोजहिशत्रुँरभिगाइन्द्रवृन्धि ।।*(ऋग्वेद ४/६/१७/३)
भाष्यार्थ - 'हे परमात्मान् ! सूर्य रूपी श्रीरामचन्द्रजीको  आविष्कृत करो (सीता हरण रूपी शोक को मिटाकर श्रीरामजी को उद्भासित करो ,जिस प्रकार अपने मुख से निकालकर सूर्य के शोकको उद्भासित किया था ) । हम लोगों को अन्न भोजन कराओ । हमारे शत्रुओं का विनाश करो और दस्यु  ( *दस्यवो रावणादय:* (श्रीमद्भागवत ९/६/३३) रावण द्वारा अपहृत की गई श्रीराम रूपी सूर्य की गौ अर्थात् प्रभा ( *नाहं शक्या त्वया स्प्रष्टुमादित्यस्य प्रभा यथा ।* वाल्मीकि रामायण ३/४७/३७) श्रीसीताजी को खोजकर उद्भासित करो । जिस प्रकार सूर्य की प्रभा सूर्य से अलग नहीं उसी प्रकार श्रीरामचन्द्र रूपी सूर्य से श्रीसीता  रूपी उनसे अलग नहीं ।

।। जय श्रीसीता-रामजी   जय महावीर हनुमाञ्जी ।।

Comments

  1. क्या आप सनातन का सत्य जानते हैं

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

Dayand antarvasna

#सत्यार्थप्रकाश_का_असत्य " भाग 2 "

।।सृष्टि बने कितने वर्ष हुये।।