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Showing posts from August, 2020

Dayand antarvasna

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        जिन भड़वे समाजियों का उद्देश्य सनातन धर्म ग्रंथों के उदाहरणों को गलत संदर्भ में प्रस्तुत करते हुए- धर्म के न जानने वालों के बीच भ्रम का भाव उत्पन्न कर उन्हें धर्म के मार्ग से विमुख करना है सनातनधर्मियों को अपमानित करना व उन्हें नीचा दिखाना, धर्म विरोधीयों की सहायता करना आदि हैं, उनके लिए सप्रेम --------------   (दयानंद कृत यजुर्वेदभाष्य, भाष्य-१) पूषणं वनिष्ठुनान्धाहीन्स्थूलगुदया सर्पान्गुदाभिर्विह्लुत आन्त्रैरपो वस्तिना वृषणमाण्डाभ्यां वाजिनग्वगं शेपेन प्रजाग्वं रेतसा चाषान् पित्तेन प्रदरान् पायुना कूश्माञ्छकपिण्डैः॥ ~यजुर्वेद {अध्याय २५, मंत्र ७} दयानंद अपने यजुर्वेदभाष्य में इस मंत्र का अर्थ यह लिखते हैं कि--- हे मनुष्यों! तुम मांगने से पुष्टि करने वालों को स्थूल गुदेंद्रियों के साथ वर्तमान, अंधे सर्पों को गुदेंद्रियों के साथ वर्तमान विशेष कुटिल सर्पों को आंतों से, जलों को नाभि के नीचे के भाग से, अंडकोष को आंडों से, घोडे के लिंग और वीर्य से संतान को, पित्त से भोजनों को, पेट के अंगो को गुदेंद्रिय और शक्तियों से शिखावटों को निरंतर लेओं। समीक्षक--   ...

ईसाई जोक

 ईसाई पैगम्बरों का चरित्र :-  1- “इंसान को आदमी के पाखाने से रोटी पका कर खाने की आज्ञा देता है|”   (बाईबिल -जेह्केल पर्व ४) 2- “बाप को अपनी बेटी से व्यभिचार व शादी करने की आज्ञा देता है तथा उसे अच्छा काम बताता है|  (बाईबिल -करन्थियो ३६-३७-३८)” 3 -“यहोवा परमेश्वर औरतो को नंगा करता है| (बाईबिल -याशाशाह३/१६-१७)” 4- "यहूदा ने अपने बेटे की बहु से व्यभिचार किया|  (बाईबिल -उत्पत्ति ३८/१२-२०)” 5 -“पैगम्बर लूत ने अपनी खास बेटियों से शराब पी करके उन्हें गर्भवती बनाया| (बाईबिल -उत्पत्ति १९/३३-३८)” 6 -“हजरत अविराहम ने अपनी बहन से व्यभिचार किया व झूठ-मुठ की शादी की|  (बाईबिल -उत्पत्ति १२/११-१३)” 7 -“याकूब ने अपनी दासियों के साथ व्यभिचार किया व उसके बेटी दीन ने हमुर के बेटे सिकम के साथ व्यभिचार किया|  (बाईबिल -उत्पत्ति ३४२४-३०)” 8 -“पैगम्बर दाउद ने उरियाह की खुबसूरत बीवी से व्यभिचार किया,उरियाह को मरवा डाला व उसकी बीवी को अपने घर में डाल लिया|  (बाईबिल -सैमुएल२ पर्व ११/२-२५)” 9 -“दाउद के बेटे आमुनुन ने अपनी सगी बहिन तामार के साथ जबरदस्ती काला मुह (व्यभिचार...

आर्यसमाज की गुदा में साँप

(दयानंद कृत यजुर्वेदभाष्य, भाष्य-१) पूषणं वनिष्ठुनान्धाहीन्स्थूलगुदया सर्पान्गुदाभिर्विह्लुत आन्त्रैरपो वस्तिना वृषणमाण्डाभ्यां वाजिनग्वगं शेपेन प्रजाग्वं रेतसा चाषान् पित्तेन प्रदरान् पायुना कूश्माञ्छकपिण्डैः॥ ~यजुर्वेद {अध्याय २५, मंत्र ७} दयानंद अपने यजुर्वेदभाष्य में इस मंत्र का अर्थ यह लिखते हैं कि--- हे मनुष्यों! तुम मांगने से पुष्टि करने वालों को स्थूल गुदेंद्रियों के साथ वर्तमान, अंधे सर्पों को गुदेंद्रियों के साथ वर्तमान विशेष कुटिल सर्पों को आंतों से, जलों को नाभि के नीचे के भाग से, अंडकोष को आंडों से, घोडे के लिंग और वीर्य से संतान को, पित्त से भोजनों को, पेट के अंगो को गुदेंद्रिय और शक्तियों से शिखावटों को निरंतर लेओं। समीक्षक--  अब कोई इन नियोग समाजीयों से यह पूछे कि उन्हें दयानंद द्वारा किये गये अधिकांश मंत्रो के ऐसे अर्थ अश्लील क्यों नहीं लगते? और जब इस वेद ऋचा की ही भांति इन्हें अन्य सनातनी धर्म ग्रथों मे कोई श्रुति या श्लोक दिख जाता हैं तो अपनी बुद्धि अनुसार ही उसके अर्थ का अनर्थ कर आप्त पुरूषों द्वारा रचित ग्रंथों का अपमान करते है और उल्टा सनातनधर्मियों और उनके शा...