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हनुमान बानर या मानव

(आर्य समाजियों के अनर्गल प्रलाप का जवाब) स्वामी विद्यानंद सरस्वती नामक एक आर्यसमाजी की माने तो पशुपक्षी वेदो के ज्ञाता नहीं हो सकते, क्यों भाई जिन चीजों में जीवन भगवान ने डाला है क्या वो उसे सिखा नहीं सकता क्या, आर्य समाजियों की मुख्य दिक्कत ये है की ये कुछ ज्यादा ही “प्रेक्टिकल” है, क्या वानर, भालू और गिद्ध वेदो के ज्ञाता नहीं हो सकते? अब ज्यादा ना लपेटते हुए निम्न ब्लॉग लिखने का कारण बताता हूँ! आर्यसमाजियों के अनुसार हनुमान जी ना वानर थे, जामवंत जी ना भालू और ना जटायु गिद्ध थे, बस एक आर्यसमाजी ही थे जो चतुर थे, ये मुख्यतः वाल्मीकि रामायण का उदाहरण देते हैं, और तुलसीदासकृत रामचरितमानस को मूर्खों का ग्रन्थ बताते हैं, खैर उस बारे में इनकी पोल बाद में खोलूंगा, अभी बात करते है की आर्य समाजियों को क्यों इस बात से इतनी लगी पड़ी रहती है! आर्य समाजियों का कहना है की हनुमान को वानर कहना उनका अपमान करना है, और हनुमान जी वेदों के ज्ञाता थे तो एक वानर वेदो का ज्ञाता नहीं हो सकता, क्यों भाई? इसमें अपमान की बात कहाँ से आ गयी या फिर आप भी वामपंथियों जैसे सोचने लग गए, ये तो अटल सत्य है, एक सना...